राजस्थान का नाम आते ही सबसे पहले ध्यान मे आता है, मरुस्थल,धोरे,बालू मिट्टी, ! लेकिन ऐसा नही है मेरे राजस्थान में एक ऐसी जगह भी है जो राजस्थान की एक अलग छवि प्रस्तुत करती है | जी हाँ हम बात कर रहे हैं राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की। वैसे तो कई बार इरादा बना माउंट आबू जाने का लेकिन जा नही पाया। पढ़ाई के कारण। वैसे बात दूँ मेरा नाम सलमान हैं और मैं अजमेर का रहने वाला हु। नई शुरआत की हैं। मैं आपको रूबरू करवाने वाले हु अपने प्यारे राजस्थान से, यहां की संस्कृति से, यहां की लोक कलाओं से, यहां के इतिहास से। चलो दोस्तो शुरू करता हु अपना पहला ब्लॉग। अजमेर से माउंट आबू। अजमेर से माउंट आबू वाया उदयपुर लगभग 400 किमी हैं। इस बार सोच लिया था अगले वीकेंड पर कहीं घूमने तो जाना ही है। दोस्तो को फ़ोन किया लेकिन सब किसी कारण नही चल पाए। लेकिन मुझे तो इस बार जाना ही था। सो अगरा फोर्ट से अहदाबाद सुपर फास्ट एक्सप्रेस मे स्लीपर कोच मैं टिकट बुक करवा ली। आखिर वो दिन भी आया जब मुझे निकलना था। वैसे तो मैंने बहुत सारी जगह देखी हैं बहुत जगह घुमा हुँ, पर अकेले जाने का यह पहला अनुभव था। चूँकि ट्रैन का समय सुबह 4.40 था , सारी तैयारी रात को ही कर ली थी, रात भर सो भी नही सका । 4.15 पर मैं स्टेशन पहुच चुका था। ट्रैन अपने समय पर स्टेशन आयी, में अपने कोच मैं जाकर सो गया। क्या मस्त नींद आयी, आंख सुबह आबू रोड पहुचने से पहले ही खुली। ट्रैन ने ठीक 9.30 बजे मुझे आबू रोड उतार दिया था। अब सबसे पहला काम था माउंट आबू जाने के लिए बस ढूंढना, लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते ही काफी सारे टैक्सी वाले आ गए। एक टैक्सी वाला सस्ते मे मान गया सो हो लिए उसी टैक्सी मैं। आबू रोड से माउंट आबू की दूरी लगभग 28 किमी हैं। जैसे ही आबू रोड के बाद अरावली की घाटी शुरू होती क्या नज़ारा। मुह से बस एक ही शब्द निकला बेहतरीन। जैसे जैसे हम आगे बढते जा रहे थे नज़ारे और भी शानदार होते जा रहे थे। और सर्दी पूछो मत दिसम्बर का महीना चल रहा है आप खुद ही सोच सकते हो कैसी जबरदस्त सर्दी होगी। माउंट आबू मैं रात के समय पारा शून्य से नीचे भी चला जाता हैं यहां। खैर सुहावाने मौसम और खूबसूरत नज़ारो देखते देखते कब माउंट आबू आ गया पता ही नही चला। टैक्सी वाले को ही बोल दिया था मैंने कोई अच्छी सी होटल देखने के लिए जहां रुक सके। होटल गुड लक रेजिडेंसी मे रूम देखा पसंद आ गया सो ले लिया। 1300 का था लेकिन अच्छा था। गरम पानी से स्नान कर के, आधा घंटे पहले तो अच्छे से नींद ली, फिर सोचा सोने के लिए थोड़ी आया हु, सो निकल पड़ा नक्की झील देखने। होटल से नक्की झील 2 किमी थी, लेकिन पेदल ही जाना अच्छा समझा और निकल गया, नक्की झील देखने। नक्की झील के बारे मे कहते हैं कि इसे देवताओं ने अपने नाखूनों से खोद कर बनाया हे इसी लिए इसका नाम नक्की झील हैं। मार्केट से होते हुए जब नक्की झील पहुचा , दिल खुश हो गया। पहाड़ो के बीच एक सुंदर सी झील , जैसे नैनीताल मैं नैनी लेक है वैसे ही। कई लोग बोटिंग का मज़ा ले रहे थे, बहुत से नव विवाहित जोड़े एक दूसरे मैं मशगूल थे, यहां ज्यादातर लोग गुजरात से आते हैं तो अपको यहां गुजराती सुनने को भी मिल जाती हैं। सच मैं जो लोग राजस्थान को सिर्फ मरुस्थल के रूप मे देखते हैं उन्हें एक बार माउंट आबू जरूर आना चाहिए। उन्हें भी तो पता लगे राजस्थान को प्रकृति ने अपने अनमोल नजारों से नवाजा हैं। काफी देर झील के किनारे बैठने के बाद यहां से जाने का मन तो नही था लेकिन सुबह से नास्ते के अलावा कुछ खाया नही था तो सोचा चलो होटल चल कर ही खाएंगे। होटल पहुच कर खाने का आर्डर दिया और खाना खा के कल की तैयारी करने लगा काल कहाँ जाना है , वैसे तो उन टैक्सी वाले अंकल का कार्ड था जिसने माउंट आबू मैं घूमने लायक सभी जगहों की जानकारी थी। सो होटल मैनजर से बात की उस ने कल के लिए एक स्कूटी बुक कर दी। सोचा थोड़ी देर सो लू श्याम को सनसेट पॉइंट जा कर सनसेट का नज़ारा देखूंगा लेकिन निंद ऐसी आयी कि 7 बजे उठा । सो आज का सनसेट तो नही देख पाया लेकिन कल का जरूर देखूंगा। स्कूटी ली और निकल गया वापस आबू का बाजार देखने। कल गुरुशिखर जाना है, और भी बहुत सी जगह जाना और दिन है सिर्फ एक ! देखते हैं क्या होता हैं!
नक्की झील
नक्की झील
बोटिंग करते हुए लोग
आबू मार्किट नाईट मे
रात मे नक्की झील
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें